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फोनवा बजा बेबीबाई का

बचाखुचा
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बेबीबाई को यूं तो जिनगी से कोई मलाल न था, लेकिन कई मर्तबा वो ऊपरवाले के पछपाती ढंग-तौर पर बिगड़ पड़ती। सबसे पहला और बड़ा पछपात कि उसने सर्वगुणसंपन्न बेबी को छोटे से गांव में पैदा किया, जबकि पैदा होते ही उसने अपने ठेठ शहरी लक्छनों से माय-बाप को हैरत में डाल दिया था। हुआ यूं कि घरवालों के मुन्नी या बबुनी कहकर पुकारने पर निर्लिप्त भाव से अंगूठा चूसती बेबी दसवीं फेल डागतर बाबू के बेबी पुकारते ही किलकारी मारकर उनकी गोद में चली गई। लिहाजा, बहुत सोच-समझकर वही नाम धर दिया गया। इमरती, जलेबी, खुशबू से अलग गांव की पहली बेबी थी वो, लिहाजा पूछ-परख भी भरपूर थी। बची-खुची कसर पूरी कर दी उज्जर नैननक्श और पिराइमरी स्कूल की ‘डिगरी” ने।
उसकी उम्र की बाकी लड़कियां तड़के उठके खेतों में जातीं और तिनके तोड़ती हुई गप्पें लड़ातीं लेकिन मजाल है जो गांव के मुरगे ने भी बेबीबाई को कभी इस गंधन-क्रिया में संलिप्त देखा हो। भकर-भकर करके खाना खाती बाकी लड़कियां मुंह-चौचक देखती रह जातीं, जब बेबी अदा से एक-एक निवाला मुंह में डालतीं। अपनी एकमात्र सखी पर बेबी ने अपने गठन का राज खोला- मैं हर कौर को 32 बेर चबाती हूं, जैसा शहर के डागतर टीवी पर बताते हैं। सखी, जो अपने नाम एलिजाबेथ के चलते बेबी की सखी होने का गौरव पाई हुई थी, ने झट्ट से गांवभर को ये राज बता दिया। फेर क्या था, हर लड़की बेबी को टक्कर देने की तैयारी में जुट गई। लेकिन बेबीबाई यूं ही तो बेबी नहीं थीं। गांव में शहर से लोगों के आने पर ताबड़तोड़ अंगरेजी में गिटपिटयाती बेबी का पंच लोग भी लोहा मानते। उसने ये अंगरेजी कहां से सीखी, ये खुद उसकी मां को भी नहीं पता था। लिहाजा, गांवभर ने सर्वसम्मति से तय किया कि बेबी पिछले जन्म में जरूर कोई अंगरेज मेम रही होगी। हां, ये और बात है कि बेबी की ये अंगरेजी, अंगरेजी जानने वालों के लिए किसी यातना से कम नहीं होती थी।
होली करीब आ गई थी। पूरा गांव इसके रंग में अलग-अलग ढंग से सराबोर था। बच्चे हुल्लड़ की खुली छूट को लेकर खुश थे तो हर जवान किसी न किसी गोरी के साथ सेटिंग को लेकर पिलानिंग कर रहा था। नई उमर की  छोरियां पुरानी चोलियों को नए ढंग देने में जुटी थीं तो बड़ी उमर की जनानियां नई पीढ़ी को कोसने में लगी थीं। गोयाकि, सबने अपने-अपने काम बांट रखे थे। होलिका दहन से एक रोज पहले गांववाले हैरान रह गए, जब चमचमाती चार-पहिया चौपाल पे खड़ी देखी। अरे, सरकार फेर गिर गई का, किसी ने मसखरी की। पता चला कि गाड़ी सरकारी ही है लेकिन अबकी बार वो वोट मांगने नहीं, बल्कि पानी बचाने की अपील करने आए हैं। सुनकर पीछे से जुमला उछला- इ पानी है। हमारे गांव का पानी, कोउन सरकार की योजना नहीं, के संभल-संभलकर खर्चना पड़े। बहरहाल, अपील वाली टीम के साथ आई आम की फांक जैसी आंखोंवाली युवती ने गांववालों से बातचीत की बागडोर संभाली। मोहित पंचों ने इस युवती की देखरेख का जुम्मा दे दिया गांव की सबसे जहीन लड़की बेबीबाई को। उसका रंग मेरे रंग से गोरा क्यों, सोच-सोचकर डाह से दुबरा गई बेबी ने लिहाजा अपने हावभाव से खुल्लमखुल्ला एलान कर दिया कि वो भी किसी से कम नहीं।
होली से दो रोज पहले टीम गांव में निकल पड़ी। शहरी गुलबिया (बेबी ने युवती को यही नाम दिया था) का मोबाइल बार-बार बजकर पहले से मोहित लोगों को और भी मोह रहा था। तंग आकर युवती ने कॉल रिसीव किया। इधर बेबी ने एलान किया- गुलबिया के पति का फोन है। बहुते गरिया रहा था उसको किसी बात पे। जाने क्या कांड करके आई है और बड़ी हीरोईन बन रही है यहां। फोन पर बातचीत अंग्रेजी में हुई, लिहाजा, बेबी की बात वेदवचन थी। घंटी फिर भी बजे जा रही थी। युवती ने मोबाइल बेबी को थमा दिया ताकि गांववालों से बातचीत में बाधा न पड़े। अब्ब जाकर बेबी को उसके गुणों के मुताबिक काम मिला। वो मोबाइल लिए-लिए फिर रही थी कि तभी घंटी दोबारा बज उठी। लाल-हरा बटन दबाने में कनफ्यूजियाई बेबी ने कॉल रिसीव कर लिया।
‘हैलो बेबी, कब से तुम्हें कॉल ट्राय कर रहा था” उधर से अधिकारपूर्ण आवाज आई। बेबी का जी धक से रह गया। अब इ कौन मरदुआ है, जो उसका नाम भी जानता है और अंग्रेजी भी। दूसरी ओर से लगातार आती हैलो-हैलो पर संभलकर बेबी ने पूछा- हेलो, कौन बोल रहा है। उधर वाली आवाज के सुर बदल गए। ‘गुस्सा छोड़ो बेबी, अब घर लौट आओ। बेबी हैरान। आखिर कौन है जो उसका नाम भी जानता है, अंग्रेजी भी और बुला भी रहा है। उसने फिर पूछा- कौन हो तुम। अबकी सवाल के बदले सवाल आया- आप कौन हैं और रूमा कहां है। ओह, तो इ फोन उ गुलबिया के लिए है। लेकिन फेर तुम काहे बेबी-बेबी कर रहे थे। गुस्से में बेबीबाई और भी अंगार बन गई। वो गरज-बरस रही थी कि तभी मालकिने-मोबाइल आ गईं और बेबी के हाथ से मोबाइल चला गया। वक्त गुजर गया लेकिन बेबी आज भी हैरान है कि आखिर फोन करने वाले को उसका नाम कैसे पता चला। यदा-कदा वो गांववालों को बताती फिरती हैं कि शहर में भी उसके कद्रदान हैं, जो उसका नाम जानते हैं।

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